मंगलवार, 9 दिसंबर 2008










सपनों का होम-रूम-

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

जंगल राज

लहर ने समंदर से
उसकी उम्र पूछी
समंदर मुस्करा दिया
लेकिन जब बूँद ने
लहर से उसकी उम्र पूछी
तो लहर बिगड़ गई
कुढ़ गई चिढ़ गई
बूँद के ऊपर ही चढ़ गई
और. . .मर गई!
बूँद समंदर में समा गई
और. . .समंदर की उम्र बढ़ा गई!

बौड़म जी बस में

बस में थी भीड़
और धक्के ही धक्के,
यात्री थे अनुभवी,
और पक्के।

पर अपने बौड़म जी तो
अंग्रेज़ी में
सफ़र कर रहे थे,
धक्कों में विचर रहे थे।
भीड़ कभी आगे ठेले,
कभी पीछे धकेले।
इस रेलमपेल
और ठेलमठेल में,
आगे आ गए
धकापेल में।

और जैसे ही स्टॉप पर
उतरने लगे,
कंडक्टर बोला-
ओ मेरे सगे!
टिकट तो ले जा!
बौड़म जी बोले-
चाट मत भेजा!
मैं बिना टिकिट के
भला हूँ,
सारे रास्ते तो
पैदल ही चला हूँ।

जंगल गाथा

एक नन्हा मेमना
और उसकी माँ बकरी,
जा रहे थे जंगल में
राह थी संकरी।
अचानक सामने से आ गया एक शेर,
लेकिन अब तो
हो चुकी थी बहुत देर।
भागने का नहीं था कोई भी रास्ता,
बकरी और मेमने की हालत खस्ता।
उधर शेर के कदम धरती नापें,
इधर ये दोनों थर-थर कापें।
अब तो शेर आ गया एकदम सामने,
बकरी लगी जैसे-जैसे
बच्चे को थामने।
छिटककर बोला बकरी का बच्चा-
शेर अंकल!
क्या तुम हमें खा जाओगे
एकदम कच्चा?
शेर मुस्कुराया,
उसने अपना भारी पंजा
मेमने के सिर पर फिराया।
बोला-
हे बकरी - कुल गौरव,
आयुष्मान भव!
दीर्घायु भव!
चिरायु भव!
कर कलरव!
हो उत्सव!
साबुत रहें तेरे सब अवयव।
आशीष देता ये पशु-पुंगव-शेर,
कि अब नहीं होगा कोई अंधेरा
उछलो, कूदो, नाचो
और जियो हँसते-हँसते
अच्छा बकरी मैया नमस्ते!

इतना कहकर शेर कर गया प्रस्थान,
बकरी हैरान-
बेटा ताज्जुब है,
भला ये शेर किसी पर
रहम खानेवाला है,
लगता है जंगल में
चुनाव आनेवाला है।

बहुत पहले

बहुत पहले से भी बहुत पहले
................................................
बहुत पहले
बहुत पहले से भी बहुत पहले
इस असीम अपार अंतरिक्ष में
घूमती विचरती हमारी धरती!
बड़े-बड़े ग्रह-नक्षत्रों के लिए
एक नन्हा-सा चिराग़ थी।
एक लौ थी और
फकत आग ही आग थी।

बहुत पहले
बहुत पहले
बहुत पहले से भी बहुत पहले
जब प्रकृति की सर्वोत्तम कृति
मनुष्य का कोई हत्यारा नहीं था,
तब समंदर का पानी भी
खारा नहीं था।

बहुत पहले
बहुत पहले
बहुत पहले से भी बहुत पहले
जब बिना किसी पोथी के
इंसान एक दूसरे की आँखों में
प्यार के ढ़ाई आखर बाँचता था,
तो समंदर
अपनी उत्ताल लय ताल में
मुग्ध-मगन नाचता था।
लहर-लहर बूँद-बूँद उछलता था,
तट पर बैठे प्रेमियों के
पैर छूने को मचलता था।

अचानक किसी सुमात्रा में
बेहद कुमात्रा में
तलहटी काँपी,
तो जाने कौन-सी कुलक्षणी कुनामी
पर कहने को सुनामी
लहरों ने लंबी दूरी नापी।

वो लहरें
झोंपड़ियों मकानों बस्तियों को
ढहा कर ले गईं,
प्यारे-प्यारे इंसानों को
बहा कर ले गईं।

बहुत पहले
बहुत पहले
बहुत पहले से भी बहुत पहले
जिन्होंने भी अपने-अपने आत्मीय खोए,
वे खूब-खूब रोए।
झोंपड़ी के आँसू बहे
बस्ती के आँसू बहे
शहरों के आँसू बहे
मुल्कों के आँसू बहे।

इतने सारे
मानो रुके हुए हों
सदियों से आँसू,
पानी भरो तो मिले
नदियों से आँसू।

और जैसे ही व्याकुल सिरफिरा
पीड़ा का पहला आँसू
समंदर में गिरा
समंदर सारा का सारा
पलभर में हो गया खारा।

बहुत पहले
बहुत पहले
बहुत पहले से भी बहुत पहले
समंदर सारा का सारा
पलभर में हो गया खारा

लेकिन ज़िंदगी नहीं हारी
न तो हुई खारी,
बनी रही ज्यों की त्यों
प्यारी की प्यारी।
क्योंकि
हर गीली आँख के कंधे पर
राहत की चाहत का हाथ था,
इंसान का इंसानियत से
जन्म जन्मांतर का साथ था।
फिर से चूल्हे सुलगे
और गर्म अंगीठी हो गई,
मुहब्बत की नदियाँ
फिर से मीठी हो गईं।
फिर से महके तंदूर
फिर से गूँजे और चहके संतूर।
फिर से रचे गए
उमंगों के गीत,
फिर से गूँजा जीवन-संगीत।

शापग्रस्त पापग्रस्त
समंदर भले ही रहा
खारे का खारा,
लेकिन उसने भी
देख लिया हौसला हमारा।
मरने नहीं देंगे किसी को
हम फिर से आ रहे हैं
तेरी छाती पर सवारी करने।
इस बार ज़्यादा मज़बूत है
हमारी नौका,
छोड़ेंगे नहीं मुस्कुराते हुए
जीवन जीने का
एक भी मौका।

तुम्हारी याद

तब याद तुम्हारी

जब शामो-सहर के आँगन में
हर साल बहारें आती हैं
जब काली घटा के दामन में
बगुलों की कतारें आती हैं
तब याद तुम्हारी आती है
बड़ी देर मुझे तड़पाती है।

जब पायल की झंकार बजे
जब होंठ पे कोई राग सजे
जब पंछी गीत सुनाते हैं
सरवर में कमल मुस्काते हैं
तब याद तुम्हारी आती है
बड़ी देर मुझे तड़पाती है।

जब तारे टिम-टिम करते हैं
परबत से झरने झरते हैं
जब नदिया कल-कल करती है
जब चाँदनी आहें भरती है
तब याद तुम्हारी आती है
बड़ी देर मुझे तड़पाती है।

जब आँख में सपने पलते हैं
अरमान मचलने लगते हैं
जब रात सँवरने लगती है
तन्हाई डरने लगती है
तब याद तुम्हारी आती है
बड़ी देर मुझे तड़पाती है।

प्यारे कृष्ण कन्हैया

प्यारे कृष्ण कन्हैया

कलयुग में अब ना आना रे प्यारे कृष्ण कन्हैया
तुम बलदाऊ के भाई यहाँ हैं दाउद के भैया।।

दूध दही की जगह पेप्सी, लिम्का कोकाकोला
चक्र सुदर्शन छोड़ के हाथों में लेना हथगोला
काली नाग नचैया। कलयुग में अब. . .।।

गोबर को धन कहने वाले गोबर्धन क्या जानें
रास रचाते पुलिस पकड़ कर ले जाएगी थाने
लेन देन करके फिर छुड़वाएगी जसुमति मैया।
कलयुग में अब. . .।।

नंद बाबा के पास गाय की जगह मिलेंगे कुत्ते
औ कदंब की डार पे होंगे मधुमक्खी के छत्ते
यमुना तट पर बसी झुग्गियों में करना ता थैया।
कलयुग में अब. . .।।

जीन्स और टीशर्ट डालकर डिस्को जाना होगा
वृंदावन को छोड़ क्लबों में रास रचाना होगा
प्यानो पर धुन रटनी होगी मुरली मधुर बजैया।
कलयुग में अब. . .।।

देवकी और वसुदेव बंद होंगे तिहाड़ के अंदर
जेड श्रेणी की लिए सुरक्षा होंगे कंस सिकंदर
तुम्हें उग्रवादी कह करके फसवा देंगे भैया
कलयुग में अब. . .।।

विश्व सुंदरी बनकर फ़िल्में करेंगी राधा रानी
और गोपियाँ हो जाएँगी गोविंदा दीवानी
छोड़के गोकुल औ' मथुरा बनना होगा बंबइया।
कलयुग में अब. . .।।

साड़ी नहीं द्रौपदी की अब जीन्स बढ़ानी होगी
अर्जुन का रथ नहीं मारुति कार चलानी होगी
ईलू-ईलू गाना होगा गीता गान गवैया।
कलयुग में अब. . .।।

आना ही है तो आ जाओ बाद में मत पछताना
कंप्यूटर पर गेम खेलकर अपना दिल बहलाना
दुर्योधन से गठबंधन कर बनना माल पचइया।
कलयुग में अब. . .।।

मेरी प्यारी बहना

मेरी प्यारी बहना

मेरी प्यारी बहना
भइया का है कहना
तेरे हाथ की राखी है
मेरे जीवन का गहना।

रोज़ नए सुख लेकर आए
परियों वाली टोली
रात दीवाली-सी जगमग हो
हर दिन तेरी होली
हों सोलह श्रृंगार हमेशा
हर पल सुख से रहना।

ये बंधन विश्वास प्रेम का
नहीं है केवल धागा
जीवन भर रक्षा करने का
इक भाई का वादा
संकट में आवाज़ लगाना
पीड़ा कभी न सहना।

दुर्गावती ने लिखकर भेजी
थी हुमायूँ को पाती
रक्षाबंधन उस दिन से ही
है भारत की थाती
तुम बिल्कुल चिंता मत करना
तेरा भइया है ना।

गांधी, मत आना

गांधी, मत आना

अब देश में गांधी, मत आना मत आना, मत आना
सत्य, अहिंसा खोए अब तो खेल हुआ गुंडाना।

आज विदेशी कंपनियों का है भारत में ज़ोर
देशी चीज़ें अपनाने का करोगे कब तक शोर
गली-गली में मिल जाएँगे लुच्चे, गुंडे, चोर
थाने जाते-जाते बापू हो जाओगे बोर
भ्रष्टाचारी नेताओं को पड़ेगा पटियाना।
अब देश में गांधी, मत आना मत आना, मत आना।

डी.टी.सी. की बस में धक्का कब तक खाओगे
बिजली वालों से भी कैसे जान बजाओगे
अस्पताल में जाकर दवा कभी न पाओगे
लाठी लेकर चले तो 'टाडा' में फँस जाओगे
खुजली हो जाएगी जमुना जी में नहीं नहाना।
अब देश में गांधी, मत आना मत आना, मत आना।

स्विस बैंकों में खाता होना बहुत ज़रूरी है
गुंडों से भी नाता होना बहुत ज़रूरी है
घोटालों के बिना देश में मान न पाओगे
राष्ट्रपिता क्या, एम.एल.ए. भी ना बन पाओगे
'रघुपति राघव' छोड़ पड़ेगा 'ईलू ईलू' गाना
अब देश में गांधी, मत आना मत आना, मत आना।

खादी इतनी महँगी है तुम पहन न पाओगे
इतनी महंगाई में कैसे घर बनवाओगे
डिग्री चाहे जितनी हों पर काम न पाओगे
बेकारी से, लाचारी से तुम घबराओगे
भैंस के आगे पड़े तुम्हें भी शायद बीन बजाना।
अब देश में गांधी, मत आना मत आना, मत आना।

संसद में भी घुसना अब तो नहीं रहा आसान
लालकिले जाओगे तो हो जाएगा अपमान
ऊँची-ऊँची कुर्सी पर भी बैठे हैं बैईमान
नहीं रहा जैसा छोड़ा था तुमने हिंदुस्तान
राजघाट के माली भी मारेंगे तुमको ताना।
अब देश में गांधी, मत आना मत आना, मत आना।

होंठ पे सिगरेट, पेट में दारू हो तो आ जाओ
तन आवारा, मन बाज़ारू हो तो आ जाओ
आदर्शों को टाँग सको तो खूंटी पर टाँगो
लेकर हाथ कटोरा कर्जा गोरों से माँगो
टिकट अगर मिल जाए तो तुम भी चुनाव लड़ जाना।
अब देश में गांधी, मत आना मत आना, मत आना।

अगर दोस्ती करनी हो तो दाउद से करना
मंदिर- मस्जिद के झगड़े में कभी नहीं पड़ना
आरक्षण की, संरक्षण की नीति न अपनाना
चंदे के फंदे को अपने गले न लटकाना
कहीं माधुरी दीक्षित पर तुम भी न फ़िदा हो जाना।
अब देश में गांधी, मत आना, मत आना, मत आना।